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Zindanama – Chaand taaron ke bagair ek duniya

Author: सीमा आज़ाद

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Categories: Memoir
जीवन को किसी बड़े लक्ष्य के लिए समर्पित करने वालों को सत्ता और व्यवस्था की क्रूरता चाहे कितनी भी आंख दिखाए, वे विचलित नहीं होते। क्योंकि उनका संबल होता है यह विश्वास-
‘यूं ही उलझती रही है जुल्म से ख़ल्क
न उनकी रस्म नई है, न अपनी रीत
‘यूं ही खिलाये हैं हमने आग के फूल
न उनकी हार नयी है, न अपनी जीत।’
सीमा और विश्वविजय की जेल डायरी भी इसी आत्मविश्वास का प्रतिफल है।
डायरी का हर पृष्ठ इस सचाई की तस्दीक करता है कि बंदी व्यक्ति को तो बनाया जा सकता है, उसके विचार को नहीं। विचार तो वायु की तरह संचरित होते हैं, दृढ़ संकल्पों से सुवासित।
राजेन्द्र कुमार, अध्यक्ष जन संस्कृति मंच
डायरी के मुख्य शीर्षक
पितृसत्ता महिला और जेल जीवन
जेल में जाति धर्म का अनुपात
अन्धविश्वास का गढ़ है जेल
अदालत और लॉकअप
मुलाकात में एलआईयू, दाल- भात में मूसलचन्द
कलमाडी का डिमेंशिया और हमारी यादाश्त
जेल के बच्चे
जेल के सपने
जेल में इश्क मोहब्बत
जेल में त्योहार
जेल का इलाज
शेरां वाली
चावल में ढोला, सब्जी में बिच्छू
जेल की विक्षिप्त औरतें और उनका इलाज
अपराध का मनो सामाजिक विश्लेषण
सीमा आज़ाद

हिन्दी द्वैमासिक पत्रिका ‘ दस्तक नये समय की’ की सम्पादक। मामानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की उप्र इकाई की संगठन सचिव। जेल से आने के बाद कविता व कहानी लेखन, जो विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित। विभिन्न पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन।

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